दहाड़ नहीं पाता है चीता, जानिए भारत आ रहे चीतों की खासियतें

17 सितंबर को नामीबिया से भारत पहुंचेंगे आठ चीते

खबरीलाल डेस्क। शेर और बाघ की तरह विडालवंशी होने के बावजूद चीते दहाड़ नहीं सकते हैं। इस कमी के साथ चीतों की कुछ खासियत भी होती हैं। आज की इस खबर में इस खबर में हम आपको चीतों के भारत में इतिहास से लेकर उनकी क्षमता की पूरी जानकारी देंगे।

आजादी के समय ही हो गए थे विलुप्त
हिन्दुस्तान से विलुप्त हो चुके चीतों को दोबारा यहां बसाने के लिए नामीबिया से लाए जा रहे आठ चीतों को शनिवार को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा। हालांकि, आम लोगों को यह जानकारी शायद नहीं होगी कि आजादी के समय से ही भारत में चीतों की प्रजाति खत्म हो चुकी है। बताया जाता है कि देश के अंतिम तीन चीतों का शिकार 1947 में मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था, जिसकी फोटो भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में उपलब्ध हैं।

सुपर कार से भी तेज होती है रफ्तार
बिल्ली के कुल में आने वाला चीता दुनिया का सबसे तेज रफ्तार से दौड़ने वाले जानवर है। रिसर्च के मुताबिक, ये कुछ ही सेकेंड्स में 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार प्राप्त कर लेता है, लेकिन ये ज्यादा लंबा नहीं दौड़ सकते। आपको बता दें कि चीते के पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजह से इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है। विडालवंशी होने के बावजूद यह बिल्ली या तेंदुए की तरह पेड़ पर कुशलता से नहीं चढ़ पाते हैं।

बिल्लियों के तरह गुर्राते हैं
शेर और बाघ की तुलना की इनकी शारीरिक बनावट थोड़ी भिन्न होती है। यह पतले होते हैं और सिर भी काफी छोटे होते हैं। पूरे शरीर पर काले धब्बे होते हैं और चेहरे पर काली धारियां होती हैं। रात को देखने की क्षमता कम होने और शेरों की सक्रियता के चलते यह आमतौर पर दिन के दौरान शिकार करते हैं। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि चीता अकेला विडालवंशी है जो दहाड़ नहीं सकता। यह बिल्लियों की तरह गुर्राते हैं। मादा चीता अकेले या फिर अपने शावकों के साथ तब तक रहती है जब तक की वो बड़े नहीं हो जाते और नर चीता छोटे ग्रुप्स में रहते हैं।

कूनो नेशनल पार्क का मौसम सबसे मुफीद
आमतौर पर चीते खुले व घने जंगलों की जगह थोड़ी ऊंची घास वाले मैदानी इलाकों में रहना पसंद करते हैं। ऐसे स्थान जहां का वातावरण में ज्यादा ठंडा न हो व कम बारिश होती हो साथ ही इंसानों का ज्यादा दखल न हो चीतों के लिए काफी मुफीद रहता है। भारत में चीतों के सर्ववाइल के लिए की गई रिसर्च में पता मध्य प्रदेश का कूनो नेशनल पार्क अफ्रीकन चीतों के लिए सबसे उपयुक्त जगह है। कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर में फैला है, यहां इंसानी बस्ती भी नहीं है। वहीं, इसका बफर एरिया 1235 वर्ग किलोमीटर है। पार्क के बीच में कूनो नदी बहती है। इसके दक्षिण-पूर्वी इलाके में पन्ना टाइगर रिजर्व से बाउंड्री जुड़ती है। साथ ही शिवपुरी के जंगल हैं. इस इलाके के पास ही चंबल नदी बहती है।

खाने की नहीं रहेगी कमी
कूनो नेशनल पार्क में चीतल की आबादी भरपूर होने के कारण चीतों के लिए यहां खाने की कोई कमी नहीं है। वैसे यहां सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, शाही, भालू, सियार, लकड़बग्घे भी बहु संख्या में हैं।

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